परिवर्तन
तम के गहरे बादलों ने घेरा है
आज निराशा ने डाला यहां डेरा है
थम गयी ज़िन्दगी कैसी ज्वाला है
हर तम के बाद नया सवेरा है
आधुनिकता ने रफ्तार पकड़ी थी
मानसिकता ने उड़ान भरी थी
फैला कैसा यह मायाजाल
क्षण भर में कर दिया बेहाल
हर प्रभात की किरण जब पंख पसारती
नव चेतना जागृत करने को निहारती
नवपल्लव करते धरा पर स्वागत
होता भंवर गुंजार विहग करते मधुर गान
मनुष्य तू क्यों स्तब्ध रह गया देख
देते सब मानवता को नव संदेश
परिवर्तन की आंधी में भर कर जोश
बढ़ चल राही तू यही है उद्घघोष