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12 Jun 2023 · 1 min read

परिवर्तन

स्वचित कविता

परिवर्तन

जीवन मेँ जब हो कुछ परिवर्तन ,
मन में आशाओं का नर्तन ,
बदला तो रूप खिला मन का,
तत्काल हुआ कविता का सृजन ।

यूं सुन कर तुम हैरान न हो,
निष्कारण मन परेशान न हो,
ये तो जीवन की परिपाटी,
इतिहास रहा इस का साक्षी ।

रुक गए तो फिर क्या जीवन है ?
चलते रहने से ही संभव है ।
मानव प्रकृति का अटल नियम-
परिस्थिति अनुकूल सदा विचरण ।

झुक गए तो संग ज़माना है,
यूं ठूंठ हुए तो कट जाना है ।
परिवर्तन जीवन की है पहचान,
सभ्यता विकास इस का प्रमाण।

रुक जाए नीर तो कलुषित है,
अविरल बहता गंगा जल है।
बहता पानी खुद राह बने,
रास्ते के पत्थर चूर्ण करे।

होती है यदि चट्टान उग्र ,
उतना ही हो आघात तीव्र ।
झुक जाते पर्वत है इस के आवेग से,
निश्छलता एवं लक्षय के संवेग से ।

जीवन में हो यदि अपना ध्येय सही,
खुल जाते है सारे बंधन ठीक वहीं ।
परिवर्तन तो है प्रकृति का नियम,
माना तो प्रगति क्षण प्रति क्षण ।

जीवन का उत्तम मार्ग चुनो,
निर्भय हो कर तुम उस पे चलो।
फिर देखो परिवर्तन के खिले रंग,
जीवन में भर जाये उमंग ।

विनीता नरूला

Language: Hindi
178 Views
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