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21 May 2023 · 1 min read

परिवर्तन

हमने वक्त को बदलते देखा है
ममत्व के अर्थ को अर्थहीन
विश्वास को शीशे की तरह
चकनाचूर होते देखा है।

समय की विडम्बना कहे या
कहें खेल किस्मत का, हमनें तो
अपनो को अपनो से ही भागते देखा है।

हम तो जीते थे , औरों की खुशी के लिए
वर्तमान पीढ़ी को तो सिर्फ अपनी
ही जिन्दगी जीते देखा है।

माँ – बाप की एक आवाज पर दौड़े आते थे सब
आज उसी आवाज को महफिल के
शोर मे सिसकते देखा है।

संस्कारो की कमी कहे या प्रभाव
पाश्चात्य संस्कृतिका अधिकतर
युवाओं को हर राह पर
विचलित , होते ही देखा है।

डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)

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