परिवर्तन
रिश्ते सारे बदल गए समय की रफ़्तार में,
संसार जैसे डूबा हो मोबाइल की धार में।
बिछुड़ गई संकरी पगडंडियाँ पाँव तले की,
भाई भतीजे घूमते अब बाइक और कार में।
मेल-मिलाप अब कहाँ पहले सा है होता ,
अतिथि का घर-आगंन आज बाट है जोहता।
बूढ़े खड़े हैं युवा फैलकर बैठे हैं देखो तो,
कहना बड़ों का बच्चों को नहीं है सोहता!
ननद भौजी की अब होती नहीं ठिठोली,
देवर भाभी के संग मनती नहीं अब होली।
बाग-बगीचे में शहर उग गए अब गाँवों के,
कोयल की अब सुनाई नहीं देती है बोली।
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स्वरचित एवं मौलिक