Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 9 min read

परिवर्तन

दीपांकर और माधवी को अभी एक सप्ताह ही हुआ था इस सोसाईटी में आये हुए। मुम्बई जैसे महानगर में दोनों का आगमन ऐसा था मानो स्वर्ग नगरी में आ गए हों। दीपांकर मुम्बई आने से पहले बिजनौर उत्तर प्रदेश में एक सरकारी बैंक में अफसर के पद पर कार्यरत था और माधवी भी दीपांकर के बैंक में ऋण विभाग में मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी।

दीपांकर एक मध्यम वर्गीय परिवार का इकलौता बेटा था। अपनी मेहनत और काबलियत के कारण उसे सरकारी बैंक में अफसर के पद पर नियुक्त किया गया था। बिजनौर में उसकी पहली पोस्टिंग थी। लगभग छह माह के पश्चात ही माधवी का स्थानांतरण बिजनौर शाखा में ऋण मैनेजर के पद पर हुआ था। शाखा प्रबंधक के निर्देशानुसार दीपांकर को माधवी के सहायक के रूप में कार्य करने का आदेश हुआ। इसी कारण दीपांकर और माधवी का अधिकांश समय बैंक के कार्य वश साथ साथ व्यतीत होता था। कभी-कभी तो दोपहर का खाना भी दोनों को साथ साथ खाना पड़ता था। ऋण विभाग की संपूर्ण जिम्मेदारी दीपांकर और माधवी के कंधों पर ही थी बैंक कार्य हेतु दोनों को संग में शहर के बाहर भी ऋण धारकों के व्यवसाय आदि का निरीक्षण करने जाना होता था।

दीपांकर की तरह माधवी भी एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी अतः दोनों का स्वभाव एवं दिनचर्या लगभग एक समान ही थी। शायद अधिकांश समय संग में व्यतीत करते हुए वे दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह जान चुके थे। दोनों के परिवारों में भी जान पहचान हो गई थी तथा एक दूसरे के घर आना जाना भी शुरू हो गया था। दोनों के परिवार वालों के बीच क्या बातचीत हो रही थी दोनों इस बात से अनभिज्ञ अपने कार्य में व्यस्त रहते थे। एक दिन अचानक दीपांकर और माधुरी के परिवारजनों ने दोनों से बातचीत की जिसे सुनकर दोनों ही चकित हो गए।

अगले दिन बैंक में दोनों अजनबीयों की तरह बातें कर रहे थे वे एक दूसरे से सिर्फ काम की बात कर रहे थे। बैंक का बाकी स्टाफ भी इस तरह के व्यवहार से कुछ चकित था। दीपांकर और माधवी परस्पर घर में हुई वार्ता के बारे में बात करते हुए शरमा रहे थे अचानक ही दोनों के मोबाइल की घंटी घन घना उठी शायद दोनों के घर से कॉल आई थी चुपके-चुपके दोनों ने एक दूसरे को देखा और दीपांकर मोबाइल पर बात शुरू करते हुए केबिन से बाहर निकल गया थोड़ी देर बाद जब वह वापस केबिन में आया तो दोनों एक-दूसरे से नजरें चुरा रहे थे लेकिन बात तो करनी आवश्यक थी क्योंकि दीपांकर के परिवार वालों ने फोन पर कहा था कि शाम को माधुरी को साथ लेकर शहर के प्रसिद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट में ठीक 8:00 बजे तक पहुंचना था और माधुरी के परिवार वालों ने भी दीपांकर के साथ रेस्टोरेंट में पहुंचने के लिए कहा था।

बैंक के कार्य की अधिकता की वजह से दोनों को समय का एहसास ही नहीं रहा अचानक माधवी और दीपांकर की फोन की घंटियां एक साथ घन घना उठी दोनों ने अपने-अपने फोन उठाएं और “ठीक है” की आवाज दोनों के मुंह से एक साथ निकली और फिर एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए। दीपांकर ने माधवी से परिवार वालों की इच्छा के बारे में बताया तो माधवी हल्के से मुस्कुरा कर बोली मेरे परिवार वाले भी इसी बात को कह रहे हैं। अचानक आए इस एक कॉल ने दोनों के मन में अनजानी सी चाहत जगा दी थी शायद दोनों एक ही बात सोच रहे थे ।

दोनों ने जल्दी से फाइलों को समेटा और चपरासी को केबिन का ताला बंद करने को कह कर बैंक से बाहर निकल गए । जिस रेस्टोरेंट में दोनों को बुलाया गया था वह बैंक से चंद मिनटों की दूरी पर ही था। दीपांकर ने स्कूटर स्टार्ट करते हुए माधुरी को पिछली सीट पर बैठने का इशारा किया माधवी भी सकुचाते हुए स्कूटर की पिछली सीट पर इस तरह सिमट कर बैठी मानो पहले कभी ना बैठी हो। अक्सर बैंक के कार्य हेतु दोनों स्कूटर से ही यहां वहां जाया करते थे परंतु आज दोनों को ही कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था और पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी । अचानक स्कूटर को ब्रेक मारते हुए दीपांकर ने स्कूटर रेस्टोरेंट के सामने रोक दिया। अचानक लगे ब्रेक से माधवी का शरीर आगे को झुककर दीपांकर से टकरा गया वह तुरंत स्कूटर की पिछली सीट से उतरी मानो कूद ही गई हो। दीपांकर ने स्कूटर पार्क किया और दोनों रेस्टोरेंट् के अंदर प्रवेश कर गए । अंदर जाकर दोनों अचंभित हो गए क्योंकि दोनों के परिवार वाले खड़े होकर ताली बजाकर दोनों का स्वागत कर रहे थे। दीपांकर और माधवी ने एक दूसरे के परिवारजनों को हाथ जोड़कर अभिवादन किया सभी लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ चुके थे यही वह क्षण था जब दोनों के परिवार वालों ने अपनी अपनी इच्छा दोनों के समक्ष रख दी जिसे सुनते ही दोनों के गाल गुलाबी हो गए और शर्मा कर एक दूसरे को कनखियों से देखने लगे अब रेस्टोरेंट से निकलने से पूर्व दोनों परिवारों के बीच रिश्तेदारी ने जन्म ले लिया था । अच्छा सा मुहूर्त देखकर दोनों का विवाह संपन्न हो गया । अभी भी दोनों पूर्व की भांति बैंक का कार्य लगन और मेहनत से कर रहे थे।

शादी के 1 वर्ष पूर्ण होते होते दीपांकर को प्रमोशन मिला और मैनेजर के पद पर कार्य करने हेतु मुंबई स्थानांतरण हो गया। माधवी का भी ऋण मैनेजर के पद पर ही मुंबई स्थानांतरण कर दिया गया। शादी के 1 वर्ष बाद ही दोनों का मुंबई आना मानो मन की मुराद बिन मांगे पूरी होने जैसा था। मुंबई आने के बाद दोनों को अब चिंता थी रहने के लिए एक अच्छा घर ढूंढने की जो बैंक के पास हो तथा उनके बजट में हो। बैंक ने घर मिलने तक दोनों के रहने खाने की व्यवस्था बैंक के गेस्ट हाउस में करा दी थी। दोनों का सुबह और शाम का समय घर ढूंढने में ही लग जाता था। देर रात तक घर ढूंढते ढूंढते थक कर वापस आते और अगले दिन के लिए प्रार्थना करते हुए सो जाते।

लगभग 1 माह की खोज के पश्चात मनचाहा घर आखिर मिल ही गया। मुंबई जैसा शहर और इस शहर में रहना एक सपने जैसा ही था दीपांकर और माधवी का यह सपना अब साकार होने लगा था। जिस सोसाइटी में उनको घर मिला था वह सोसाइटी भी शायद अभी नई नई बनी थी। सोसाइटी में अभी भी निर्माण कार्य चल रहा था जो सड़के अधूरी थी उन्हें बनाया जा रहा था पार्क में भी व्यवस्थित तरीके से पेड़ पौधे लगाए जा रहे थे पार्क के मध्य में एक फव्वारे का निर्माण हो रहा था। एक तरफ बच्चों के लिए झूले लगाए जा रहे थे। दीपांकर और माधवी का घर सातवें माले पर था लेकिन उनके टावर में कुल 24 फ्लैट थे और उसके ऊपर खुला टेरेस कुल मिलाकर दोनों ऐसा घर पाकर बहुत खुश थे। सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर नाश्ता बनाना दोपहर के लिए लंच बनाना तैयार होकर नाश्ता करना इन्हीं सब क्रियाकलापों में बैंक जाने का समय हो जाता शाम को बाजार से घरेलू सामान लेते हुए थक हार कर घर आना थोड़ा आराम कर चाय बनाना, चाय दीपंकर ही बनाते थे क्योंकि माधवी को रात का खाना भी बनाना होता था और सुबह के लिए लिए नाश्ते और दोपहर के खाने का प्रबंध रात में ही सोच कर तैयार रखना होता था जिससे सुबह बैंक जाने में देरी ना हो इसी भागमभाग की जिंदगी में उन्हें समय ही नहीं मिलता था सोसायटी के अन्य लोगों से बात करने का अथवा मिलने का। कभी कभार लिफ्ट में जिन लोगों से मुलाकात होती थी वही पूछ लेते थे क्या नए आए हो? किस फ्लोर पर रहते हो? फ्लैट नंबर क्या है? कहां काम करते हो? वगैरा-वगैरा लेकिन दीपांकर और माधवी को उन लोगों से बात करने का या उनके बारे में जानने का समय ही नहीं मिलता था। संयुक्त परिवार में रहने वाले दोनों मुंबई की भागमभाग वाली जिंदगी में ना तो समय ही निकाल पा रहे थे ना ही किसी से मिलने का मन होता था। कुछ समय के बाद उन्हें यह जिंदगी कुछ अलग सी महसूस होने लगी और परिवार वालों की याद सताने लगी।
मुंबई में रहते हुए इन्हें लगभग 2 माह हो चुके थे घर को सजाते सँवारते रविवार का दिन भी ना जाने कब बीत जाता था अब जाकर थोड़ा आराम मिला तो घर परिवार की याद आना स्वाभाविक ही था। आज रविवार भी था शायद मुंबई का पहला रविवार जब दोनों अपने आप को खुला खुला सा महसूस कर रहे थे। दिनचर्या में सवेरे का समय भी मानो धीरे-धीरे चल रहा था दीपांकर बालकनी में बैठकर समाचार पत्र पढ़ रहे थे इसी बीच माधवी भी हाथ में चाय की ट्रे लेकर बालकनी में आ गई थी। ट्रे को मेज पर रखकर कुर्सी खिसका कर वह भी बैठ गई और बाहर का नजारा देखने लगी। अचानक उसकी नजर सोसाइटी में खेल रहे बच्चों पर पड़ी देखते देखते वह सहम सी गई क्योंकि बच्चों के खेल के बीच में कुछ लोग हाथों में डंडे हॉकी आदि लेकर बच्चों की ओर दौड़े चले आ रहे थे। उसने घबराकर दीपांकर को नीचे देखने के लिए इशारा किया किंतु दोनों कुछ भी ना समझ पा रहे थे। यकायक दोनों ओर से आए लोगों में वाक युद्ध शुरू हो गया शायद हाथापाई की नौबत आ सकती थी धीरे-धीरे चारों ओर लोग इकट्ठा होने लगे किंतु किसी की हिम्मत नहीं थी उन्हें रोकने की नीचे लगातार वाक युद्ध चल रहा था जिसे देखते दीपांकर और माधुरी भी नीचे की ओर लपके नीचे पहुंचते-पहुंचते उन्होंने देखा की वाक युद्ध तो बंद था परंतु दो लोग आपस में लड़ रहे थे पूछने पर पता चला कि बाकी लोग जो साथ में हाकी और डंडे लहराते आए थे इन दोनों को भिड़ा कर ना जाने कहां गायब हो गए वहां जमा भीड़ दोनों को लड़ता देख रही थी कुछ लोग उनके इस लड़ाई का भी मोबाइल से वीडियो बना रहे थे अचानक दीपांकर उस और दौड़े और लपक कर दोनों के बीच खड़े हो गए। गुस्से से भरे दोनों के घुसे दीपांकर के दोनों गालों पर पड़े और वह अचानक हुए हमले से डगमगा कर नीचे फर्श पर गिर पड़े यह देख माधवी घबरा गई और दीपांकर की ओर दौड़ पड़ी। माधवी ने दीपंकर को सहारा देकर उठाया कुछ पल के लिए मानो सब शांत हो गया था दोनों लड़ाकों ने घबराकर दीपांकर को देखा और क्षमा याचना करने लगे दीपांकर मुस्कुरा कर बोला जाने दीजिए ना भाई साहब इनमें आपका कोई कसूर नहीं है मैं ही आपकी लड़ाई के बीच में आ गया था तो उसकी सजा तो मिलनी ही थी दीपांकर की यह बात सुनकर दोनों दंग रह गए और दीपांकर से पुनः क्षमा याचना करते हुए अपने अपने घरों की दिशा में चल दिए यह देखकर दीपांकर ने दोनों को आवाज देकर रोका और अपने पास आने का इशारा किया दोनों धीमे पाँव से दीपांकर की ओर बढ़े एक अनजाने भय के साथ। दोनों के नजदीक आने पर दीपांकर ने दोनों से एक सवाल किया कि जिस लड़ाई में मेरे दोनों गाल शहीद हुए हैं कृपया यह तो बताएं कि आप लड़ किस बात पर रहे थे लड़ाई का कारण जानने के लिए जमा भीड़ भी दीपांकर के आस पास एकत्रित हो गई थी उत्सुकता बस सभी एक दूसरे की ओर प्रश्नवाचक निगाह से देख रहे थे दीपांकर के पुनः पूछने पर कि वह क्यों लड़ रहे थे दोनों एक दूसरे को (अनजान कारण) देखने लगे वह खुद इस अनजान कारण से अनभिज्ञ थे उनके पास कोई कारण नहीं था बताने को कि वह क्यों लड़ रहे थे उन्होंने आसपास एकत्रित भीड़ में नजर दौड़ाई और साथ आए लोगों को ढूंढने लगे तभी दोनों में से एक बोला कि आपके बेटे को कुछ लोग बुरी तरह पीट रहे हैं ऐसा कहकर वह मुझे अपने साथ लाए और सारे रास्ते मुझे उकसाते रहे इतने में दूसरा व्यक्ति भी बोला ठीक ऐसा ही मेरे साथ हुआ दीपांकर ने दोनों की ओर देखकर पूछा कि उन लोगों में से कोई तो आपके परिचित होंगे जरा ध्यान से सोच कर बताइए कि वह कौन लोग थे काफी सोचने पर भी जब दोनों ने कहा कि हम तो उनमें से किसी को भी नहीं पहचानते तो दीपांकर को समझते देर न लगी कि किसी उपद्रवी संगठन ने दोनों को भड़का कर सोसाइटी को बदनाम करने की कोशिश की है दीपांकर ने वहां उपस्थित सभी लोगों से निवेदन किया कि किसी भी अनजान या जानकार व्यक्ति के भड़काने वाले वक्तव्य पर उत्तेजित ना हो बल्कि पहले शांति से विचार विमर्श करें तभी कोई निर्णय लें दीपांकर कि कहीं एक-एक बात को वहां उपस्थित सभी लोगों ने ध्यान से सुना दोनों लड़ने वाले बंधुओं ने आपस में एक दूसरे को क्षमा याचना की वह गले मिलकर प्रण लिया की छोटी-छोटी बातों से बहुत बड़ी लड़ाई हो सकती है अगर गलतफहमी का शिकार हो अथवा उन पर ध्यान ना दें।

दीपांकर की एक अच्छी सोच सोसाइटी में हुए परिवर्तन का कारण बनी एवं सोसाइटी में रहने वाले प्रत्येक सदस्य के रूप में एक संयुक्त परिवार मिला जिसकी दीपांकर और माधुरी को तलाश थी।

वीर कुमार जैन

3 Likes · 8 Comments · 469 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वृक्ष की संवेदना
वृक्ष की संवेदना
Dr. Vaishali Verma
🙏 *गुरु चरणों की धूल* 🙏
🙏 *गुरु चरणों की धूल* 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
थोड़ा Success हो जाने दो यारों...!!
थोड़ा Success हो जाने दो यारों...!!
Ravi Betulwala
एक  दोस्त  ही  होते हैं
एक दोस्त ही होते हैं
Sonam Puneet Dubey
#प्रेम_वियोग_एकस्वप्न
#प्रेम_वियोग_एकस्वप्न
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
हो अंधेरा गहरा
हो अंधेरा गहरा
हिमांशु Kulshrestha
ताटंक कुकुभ लावणी छंद और विधाएँ
ताटंक कुकुभ लावणी छंद और विधाएँ
Subhash Singhai
विश्वास
विश्वास
Bodhisatva kastooriya
घनाक्षरी
घनाक्षरी
surenderpal vaidya
जवानी में तो तुमने भी गजब ढाया होगा
जवानी में तो तुमने भी गजब ढाया होगा
Ram Krishan Rastogi
मुक्तक...छंद पद्मावती
मुक्तक...छंद पद्मावती
डॉ.सीमा अग्रवाल
कॉलेज वाला प्यार
कॉलेज वाला प्यार
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
ध्यान एकत्र
ध्यान एकत्र
शेखर सिंह
अमीरों का देश
अमीरों का देश
Ram Babu Mandal
जीवन को आसानी से जीना है तो
जीवन को आसानी से जीना है तो
Rekha khichi
"झाड़ू"
Dr. Kishan tandon kranti
विपरीत परिस्थितियों में भी तुरंत फैसला लेने की क्षमता ही सफल
विपरीत परिस्थितियों में भी तुरंत फैसला लेने की क्षमता ही सफल
Paras Nath Jha
|| सेक्युलर ||
|| सेक्युलर ||
जय लगन कुमार हैप्पी
जिन्दगी का मामला।
जिन्दगी का मामला।
Taj Mohammad
*देश का हिंदी दिवस, सबसे बड़ा त्यौहार है (गीत)*
*देश का हिंदी दिवस, सबसे बड़ा त्यौहार है (गीत)*
Ravi Prakash
जंग लगी थी सदियों से शमशीर बदल दी हमने।
जंग लगी थी सदियों से शमशीर बदल दी हमने।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
3156.*पूर्णिका*
3156.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सबकी सलाह है यही मुॅंह बंद रखो तुम।
सबकी सलाह है यही मुॅंह बंद रखो तुम।
सत्य कुमार प्रेमी
हमारे पास हार मानने के सभी कारण थे, लेकिन फिर भी हमने एक-दूस
हमारे पास हार मानने के सभी कारण थे, लेकिन फिर भी हमने एक-दूस
पूर्वार्थ
कशमें मेरे नाम की।
कशमें मेरे नाम की।
Diwakar Mahto
🙅आज का ज्ञान🙅
🙅आज का ज्ञान🙅
*प्रणय*
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
प्रदर्शन
प्रदर्शन
Sanjay ' शून्य'
मन की मनमानी से हारे,हम सब जग में बेचारे।
मन की मनमानी से हारे,हम सब जग में बेचारे।
Rituraj shivem verma
आँख मिचौली जिंदगी,
आँख मिचौली जिंदगी,
sushil sarna
Loading...