” परिवर्तन “
हर बार बार – बार हमें
माँ तुम ही दुलारती थी ,
जब भी डर जाते हैं हम
तो अपने आँचल में छुपाती थी,
हमें जन्म से आदत थी तुम्हारी
तुम्हारे प्यार ने जड़ों को सींचा है हमारी ,
लाड़ – प्यार का पर्यायवाची थी तुम
हमारे जीवन में अभिलाषी थी तुम ,
ममता शब्द को कोई तुमसे अलग न कर पाया
हमने हमेशा तुम्हें इस शब्द से घिरा पाया ,
तुम्हारे बिना जीवन सोचना भी दुश्वार है
तुम नही हो तो जीवन में नही प्यार है ,
एक बात तुम्हें बताते हैं माँ
एक राज़ तुम्हें जताते हैं माँ ,
तुम क्या गई जीवन बे – साया हो गया
कष्टों का हमारे जीवन में फरमाया हो गया ,
लेकिन पता है तुम्हें क्या हुआ
हमारे घर में एक फरिश्ते का उदय हुआ ,
वो पिता रूपी फरिश्ते जो हमसे दूर रहते थे
तुम्हारे रहते ताड़ से अकड़े -तने रहते थे ,
आज वो पिता बरगद बन गये हैं
हमारे उपर तंबू से तन गये हैं ,
हम उसके प्यार के साये में सुरक्षित हैं
उसका ये प्यार देख कर अचंभित हैं ,
माँ तुम चिंता ना करना
जहाँ हो वहाँ आराम से रहना ,
तुमने हमें गर्भ में रखा था
नौ महीने में प्यार वो पनपा था ,
तुम्हारे जाते ही एक और गर्भ मिल गया हमें
तुमने अंदर तो इन्होंने बाहर से सहेजा है हमें ।
स्वचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 12/06/2020 )