परिवर्तन ही जीवन है
परिवर्तन ही जीवन है
फिर इससे डरना कैंसा
काल चक्र नित चलता है
जड़ता पर मरना कैंसा
जलधारा का रुख देखा
और उसके अनुकूल हुए
सहज बचे वे तट के तरु
टूटे जो प्रतिकूल हुए
शूल भरे दुर्गम्य मार्ग पर
अपना पग धरना कैंसा
परिवर्तन ही जीवन है
फिर इससे डरना कैंसा
पथ पर जो बढ़ता जाता
पीछे मुड़कर क्यों देखे
मात इसी से मृग खाता
बीते पल को क्यों लेखे
अपने हाथों से ही खुद का
लक्ष्य परे करना कैंसा
परिवर्तन ही जीवन है
फिर इससे डरना कैंसा
सूरज चाँद सितारे नभ में
चलते ही तो रहते हैं
नदियाँ निर्झर सतत धरा पर
सहज रुप से बहते हैं
मुकुलित हुए पुष्प की भांति
असमय में झरना कैंसा
परिवर्तन ही जीवन है
फिर इससे डरना कैंसा