परिवर्तन समय पर है भारी.
समय बदलता है
बदलाव नियति है
पकडता है मन
उसी को
छोड़ देता है
ऊभ गया जिससे,
.
रोना भी हंसा देता
हंसना भी रुलाता
गालियाँ भी चौंका देती,
लौरिया सुलाती
सतसंगति जगा न पाई,
समय की जरुरत
हिसाब लेती पाई-पाई
.
बचपन समय अनुबंध से दूर
जवानी है इठलाती,
बुढ़ापे पर मार है भारी,
ये बात थोडी से समझ आई,
.
बचता नहीं था समय,
आज उसी की भरमार है,
बैठता नहीं कोई पास,
सबको आती है बास(बदबू)
दृष्टि धूमिल है,
दृष्टिकोण अनुभवी है आज भी,
.
जरूरत है किसको,
समय बदलता है ..
बदलाव पर है आमदा,
बुढ़ापा है स्वाभाविक रोग,
हर किसी में नहीं आता,
.
थोड़ा समय दो,
समझ लो ..
समय जिस पर है भारी,
वो है बुढ़ापा बैरी,
जिओ जिंदगी है,
दुखों पर न रोओ,
समय बदलता है,
प्रकृति की है नियति,
बस क्षण-क्षण पिरो लो,
अंत है देह का
समय का,
डॉ_महेन्द्र