परियों की रानी बिटिया रानी
** परियों की रानी बिटिया रानी **
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बेटा जो जन्मे घर में खुशी मनाते हैं,
बेटी होने पर गमी में दुख जताते हैं।
कुदरत के दो रंग क्यो करे बंटवारा,
बेटा-बेटी में क्यों अंतर बतलाते हैं।
सुता के बिना होता घर आंगन सूना,
ताने मार-मार जान से मार गिराते हैं।
दो घरों की हो कर भी बे-घर समझे,
पिता की लाडली रानी को सताते हैं।
बहू-बेटियों की पीर कोई न हमदर्दी,
बन बेगाने अपने ही आँसू रुलाते हैं।
औरत ही औरत को दुश्मन समझे,
सास भी कभी बहु थी हक बताते हैं।
लाड-प्रेम में पलती परियों की रानी,
फूल से कोमल रूह को तड़फाते हैं।
मनसीरत पुत्री-पीड़ा होती मुश्किल,
जालिम दुनियादारी दिल दुखाते हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)