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28 Jul 2024 · 1 min read

*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*

परिमल पंचपदी— नवीन विधा
26/07/2024

(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।

निर्माण।
क्रिया धर्मप्राण।।
नैतिकता से परिपूर्ण।
एक स्वभाविक जैविक कार्य है,
इसका निरोध ही अप्राकृतिक आघूर्ण।।

(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।

निर्वाण।
मिले जीव इच्छा।
बड़ी अच्छी है शुभिच्छा।।
शोधित कर्म के अभाव में सदा,
ये तन हो जाता है अचानक ही निष्प्राण।।

(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।

प्रयाण।
होगा करना
कोई नहीं अपरिमाण।।
तेरे शास्त्रोक्त कर्म कर पायेंगे,
इस जीवन में आगे आकर परित्राण।।

(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।

कल्याण।
पहले अपना
जो भी कर लिया करते
वही संसार के कल्याण की सोच
करने के सच्चे अधिकारी हो सकते हैं।

— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय

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