‘ परिभाषा गर्व की ‘
गर्व उस पर किया जाता है…
जो निज स्वार्थ से परे होकर
नि:स्वार्थ भाव से जीता है
अपना फटा छोड़ कर
दूसरों का फटा सीता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो उपरी आवरण से नही
मन से साफ होता है
अपना दुख भूल कर
सबको सुख देता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो शब्दों से भरमाता नही
जुबां से सच बोलता है
कितना भी कष्ट मिले
सच का साथ नही छोड़ता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो ज़रा भी असंतोषी नही होता
धैर्य से संतोष रखता है
सामने वाले का सिंदूर देख कर
अपना माथा नही फोड़ता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो कर्तव्यों से बच भागता नही
उसको बखूबी निभाता है
कर्तव्य को कर्म मान कर
पूजा उसकी करता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो नही कभी अमर्यादित होता
हर समय मर्यादा में रहता है
विकट परिस्थिति में भी एक पल को
वो मर्यादा नही खोता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो अत्याचारी ना होकर
पूरी तरह सदाचारी होता है
कैसी भी परिस्थितियां आयें
वो टिका सदाचार पर रहता है ,
गर्व उस पर किया जाता है…
जो अवगुणों से पूर्ण नही
गुणों से भरपूर होता है
अपने इन्हीं गुणों की खातिर
सबका बेहद प्रिय होता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/11/2020 )