“परिपक्वता”
“परिपक्वता”
गुस्सा करना भूली हूं मैं
हो गया है पता नहीं क्या
दुनियादारी से नहीं मतलब
मुस्कुराने का है मन करता,
भीड़ भाड़ नहीं चाहिए कतई
मीनू को बस एकांत सुहाता
घर परिवार सब हुए बेगाने
ना कोई अच्छा बुरा लगता,
लेना देना नहीं रहा किसी से
खुद में खोना अच्छा लगता
पशु पक्षी लगते अब अपने
प्रकृति दर्शन मन मोह लेता,
टांग खींचने में लगे हैं सभी
सिर्फ राज हर पल साथ देता
रानू रोमी की हंसी लगती प्यारी
पारिवारिक समय शुकून देता।