परिपक्वता
पापा के दोस्त और बेटे के दोस्त,
एक लघुकथा जो परिपक्वता पर आधारित,
एक रात मैंने अपने बेटे गौरव को शिक्षार्थ नींद से जगाया,
और एक समस्या का ब्यौरा दिया,
उसने अपने दोस्तों को मदद का आग्रह किया,
एक घण्टे तो क्या.
रात आधी हो गई,
कोई नहीं आया,
तब मैं उसे लेकर अपने दोस्त उपेश के पास ले गया,
और आवाज लगाई,
वह उठा और उसके एक हाथ में लाठी,
दूसरे हाथ में तिजोरी की चाबी,
और गेट खोल दिया,
और तिजोरी से पैसे निकालने लगा,
तभी बेटा गौरव भौचक्का था,
उससे रुका न गया और वह उपेश कुमार से पूछ बैठा.
अंकल ये सब क्यों ?
उपेश जी का जवाब सुनकर लड़का दंग रह गया,
उसने जवाब में कहा बेटा.
तेरे पापा आधी रात में आये हैं.
ये तो तय है राजीखुशी तो है नहीं,
ये आफ़त में हैं तो लाठी काम आयेगी,
कोई बीमार हैं तो पैसे,
गौरव मेरा बेटा अब तक सब समझ चुका था,
गर्दन झुकाए खडे था.
कथाएं बहुत कुछ सिखती है.
गहरी सुलाती भी है.
वो आपकी जरूरत …