परिंदों को रिहा कर दिया मैने
वीरान दरख्तों से वफा कर दिया मैने
पिंजरे से परिंदों को रिहा कर दिया मैने
उस दिन से कुछ जियादा ही चर्चे शहर में हैं
जिस दिन से शराफत को विदा कर दिया मैने
वो शख्स किसी और का हो ही नहीं सकता
हाँ फर्ज मुहब्बत का अदा कर दिया मैने
सदियों से रही रूह मिरी कैद जिस्म में
वो मिल गया तो खुद को जुदा कर दिया मैने
इस भीड़ में जब भी कोई अपना नहीं मिला
तनहाइयों से शिकवा गिला कर दिया मैने
रुसवाइयों के तीर कलेजे में डालकर
रुसवाइयों का यार भला कर दिया मैंने
बैठे जो तलबगार मिरी मौत के ‘संजय’
उनके भी हक में आज दुआ कर दिया मैने