परिंदों को आवाज़ लगाने पे रहने दे मुझे
परिंदों को आवाज़ लगाने पे रहने दे मुझे
शज़र की मानिंद रबा ठिकाने पे रहने दे मुझे
नहीं चाहिए कोई आसमान है इलित्जा मेरी यही
तिरी पलकों के शामियाने पे रहने दे मुझे
सिखाया है जो भी ज़ीस्त ने अब करना है वही
मुहब्बत- ओ -ईमान कमाने पे रहने दे मुझे
सिवा उसके ये दुनियां ना जाने ना माने मुझे
खुदा को अपने ए दिल मनाने पे रहने दे मुझे
यही चाहत है या रब मैं जी जाउं कुछ दिन और
किसी की उम्मीद ओ बहाने पे रहने दे मुझे
उजाले मैं भर दूं तेरी राहों में अहल-ए-वतन
बुझे दीये हर ओर जलाने पे रहने दे मुझे
हवाओं की पेशानी पे क्या खूब लिखा है’सरु’
नई मंज़िल नइ राह बताने पे रहने दे मुझे