परिंदों के लिए तो आशियाना चाहिए
बह्र-रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज़्न – 2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
अब हमें अपना जनमदिन यूं मनाना चाहिए।
कल्पतरू अभियान में पौधे लगाना चाहिए।।
घुल गया कितना जहर आबो-हवा में दोस्तों।
जिंदा रहना तो अब सांसों का होना चाहिए।।
हम तो परजीवी है जीने को सहारा चाहिए।
जो सहारा दे रहे न अब मिटाना चाहिए।
हमने ईंटों पत्थरों से चुन लिए अपने मकां ।
पर परिंदों के लिए तो आशियाना चाहिए।।
छीन ली हरियाली हमने हो गई बेआबरू ।
खो गई वसुधा की चूनर अब उढ़ाना चाहिए।
मेरा आंगन या तेरा घर फर्क इसमे क्या “अनीश”।
है जरूरी पेड़ बस पेड़ों को होना चाहिए ।।
@nish shah
कल्पतरू अभियान सांईखेड़ा को सादर समर्पित