जितनी ज्यादा चाह परिंदे।
जितनी ज्यादा चाह परिंदे।
मुश्किल उतनी राह परिंदे।
बैरी आज हुए हैं वो सब,
थी जिनकी परवाह परिंदे।
लगतीं मंज़िल सब आसां जो,
हो सच्चा हमराह परिंदे।
वक़्त बता देता है सबको,
किसकी कितनी थाह परिंदे।
जीवन के सब संघर्षों से,
करता चल आगाह परिंदे।
इतना मत तड़पाओ उसको,
दिल से निकले आह परिंदे।
कर्म करो कुछ ऐसे यारो,
हो महफ़िल में वाह परिंदे।
पंकज शर्मा “परिंदा”