– परायो में अपनत्व व अपनो में परायापन-
-परायो में अपनत्व व अपनो में परायापन-
वर्तमान समय मे यह भी एक विचित्र समस्या है कि अपने पराए हो जाते है व पराए अपने हो जाते है,
विगत दो वर्षों में देखने मे आया है कि जब से कोरोना आया है और देश की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया है लोगो की मनोदशा व मनोवर्ती में भी काफी परिवर्तन देखने को मिला है,
आज के समय मे धन की प्रबलता बढ़ गई है ,
जिसके पास में धन है उसके पराए भी अपने है व जिसके पास में धन का अभाव है उसके अपने भी पराए है,
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से भारत मे रिश्तों में खासा परिवर्तन देखने को मिला है,
कोरोना ने अच्छे से अच्छे व्यक्ति का गुमान तोड़कर रख दिया,
जिन्हें यह गुमान था कि हमारे जैसा कोई नही व मुझसे शक्तिशाली व समर्थ कोई नही उसको ईश्वर की सर्वशक्तिमान शक्ति ने बताया है की इस महामारी ने तेरे जैसे कितनो को मिट्टी में मिला दिया,
कई लोगो के व्यापार -व्यवसाय चौपट हो गए , कई लोग आर्थिक रूप से बर्बादी की और अग्रसर हो गए ,
उस समय मे जब उनके अपनो ने उनसे किनारा कर लिया तब उन्हें अपनो के पराएपन का एहसास कराया ,
तब अगर किसी पराए ने भी उस अनजान व्यक्ति को अपनाया या सम्बल प्रदान किया हो तो उस अनजान व्यक्ति ने अपनापन दिखाया वह अनुकरणीय है ,
किवदंती है कि चाहे कितने भी फेसबुक व व्हाट्सएप , इंस्टाग्राम पर मित्र थे लगभग 2500 के आसपास उदाहरण के तौर पर मगर जब वो बीमार हुआ तो अस्पताल में उसके परिवार वाले ही थे,
किंतु कही बार ऐसा नही होता है कही बार जो अनजान होता है वो मदद करता है वो मदद होती है उस समय भी अगर अस्पताल में उसका परिवार था उसके परिवार के वहा पर रहने का कोई न कोई स्वार्थ रहता है,
मगर अनजान व्यक्ति का उससे कोई स्वार्थ नही होता है जो निस्वार्थ मदद करता है वही अपना होता है,
कहा भी जाता है कि अपने वे नही होते जो तस्वीर में साथ होते है बल्कि अपने वे होते है जो तकलीफ में साथ होते है,
इस प्रकार तकलीफ में अपने साथ न दे और उल्टा उसे मानसिक,शारीरिक, आर्थिक हानि पहचाने की चेष्टा करे वो अपने कभी भी हो ही नही सकते है,
भाई -भाई की भुजा होता है,
अगर सहोदर भाई ही अनजान हो जाए और कोई दूसरा मदद करे तो वो भाई से भी बढ़कर होता है
और एक बात समय परिवर्तनशील है इसका ध्यान रखना चाहिए व्यक्ति को,
इसलिए वर्तमान समय के हर परिवार व अपनो को चाहिए की चाहे कैसी भी विपरीत परिस्थिति आ जाए अपनो का साथ नही छोड़ना चाहिए ,
क्योंकि ऐसे हालातो में अगर कोई किसी का साथ छोड़ता है तो उसका मन हार जाता है मन टूट जाता है,
और कहा जाता है की मन के हारे हार है मन के जीते जीत,
युद्ग में हारा हुआ तो वापिस जीत सकता है किंतु मन से हारा हुआ कभी भी नही जीत सकता,
समय एक सा कभी नही रहता है कभी धूप है तो कभी छाव है ,
इसलिए वसुदेव कुटुम्बकम की अवधारणा को अपनाते हुए अपनो के साथ सदा रहे व उन्हें अपनेपन का एहसास कराए,
भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
सम्पर्क सूत्र -7742016184-