पराया धन
कभी कहते हैं धन हो पराया
तो कभी अमानत दूसरों की कहते हैं
न जाने कैसी कैसी उपमाओं से
संबोधनों की बौछार करते हैं
न जाने क्या कभी झांका है
उसके कोमल हृदय में हमने
कितनी पीड़ा होती होगी
सुनकर जो विशेषण लगाए हमने
बेटी ही है जो मां बाप के
सुख दुख का सहारा होती है
बेटी ही है जो ससुराल में
हर एक आंख का तारा होती है
दोनों परिवारों को भी
क्या खूब निभाए रखती है
एक कदम यहां रहता है
तो दूजा कदम वहां रखती है
ससुराल और मायके के बीच
संबंध मधुर बना रखा है
दोनों परिवारों के सुख-दुख का
बीड़ा उसी ने उठा रखा है
समय की मांग यही कहती है
अपने विचारों को बदलें हम
स्नेह और ममता की इस छवि का
आदर और सम्मान करें हम
आदर और सम्मान करें हम।
इति
इंजी संजय श्रीवास्तव
बीएसएनएल, बालाघाट, मध्यप्रदेश