पराधीन पंछी की सोच
हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा?
हमें बंधनमुक्त कर दो ,
स्वयं की रीति हमें भी ,
स्वतंत्रता का हयात दे दो ,
ईश्वर ने हमें पंख दिए ,
प्लवने से हमें क्यों रोक रहे!
हम भी आजाद पंछी गढ़ ,
शून्य में भ्रमण करना चाहते ,
मिष्ट – मिष्ट सस्यों को खाना ,
समुद्र, नदियाँ का तोय घूँटना ,
हमारे भी कुछ अरमान बंधु ,
हमें भी स्वप्न सकल करने दो ,
मत गढ़ाओं पराधीन हमें ,
क्षितिज की हुंडकार लिये ,
हम भी शून्य में प्लवन चाहते ,
अर्भकों की निगरानी कर ,
अपना परिवार गढ़ते हम ,
मत गढ़ाओ पराधीन हमें ,
जयन्त में रहने से हमें ,
मृत – सा विदित होता हयात ,
अपनी स्पृहा सकल करने में ,
मेरे अरमान ना रेहो तुम ,
मत गढ़ाओ पराधीन हमें।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या