परशुराम संवाद पद्धरि, पद पादाकुलक, चौपाई गोपी अरिल्ल पादाकुलक जयकरी पुनीत ,गुपाल श्रृंगार आदि। छंद।
परशुराम संवाद
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पद्धरि छंद 16 मात्राएँ
अंत में लघु गुरू लघु
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भृगुवंशी हाथ कुठार देख।
जलते आँखों अंगार देख।।
नीचा सबने कर लीन्ह शीश।
लख चाप रहे वे दांत पीस।।
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पद पादाकुलक 16 मात्राएँ
अंत में लघु लघु गुरू
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किसने अपने कर चाप लिया ।
टुकड़े-टुकड़े कर पाप किया।।
इतना करके नहिं प्राण बचें ।
विधिना भले कोइ उपाय रचें।
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चौपाई 16 मात्राएँ
अंत में 2 गुरू
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बता जनक किसने धनु तोड़ा।
आज मौत से नाता जोड़ा।।
जो बल लगा दिया मैं थोड़ा।
फिर जानो जिंदा नहिं छोड़ा।।
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गोपी 15मात्राएँ
आदि में त्रिकल द्विकल
अंत में गुरू
कहे रघुनाथ हाथ जोड़े ।
दयाकर लखें आप थोड़े।।
आपका सेवक ही कोई।
करेगा काम प्रभु जोई ।।
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लक्ष्मण
अरिल्ल 16 मात्राएँ
अंत में लघु गुरू गुरू
या गुरू लघु लघु
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हाथ उठा फरसा चमकाया।
बात बिना सबको धमकाया।
टूटा तो है धनुष पराया ।।
फिर किस कारण हमें डराया।
सूरज ही हर सकता तमको।
आप भले कितना भी चमको।
चाहे कितना गरजो बमको।
डरा नहीं पाओगे हमको ।।
देखा उठा चाप रघुनायक।
सड़ा पुराना था वह सायक।
टूट गया वह छुअत अचानक
झूठे सब गलती के मानक।
पादाकुलक 16 मात्राएँ
बोले बातें फरसा गहकर।
आवत अति हाँसी रहरहकर।
निर्भय मुनि हम ठाड़े आगे।
सोचो भय से अबतक भागे।
परशुराम
जयकरी 15मात्राएँ
अंत में गुरू लघु
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समझा ले छोटे को राम।
वरना होगा काम तमाम।।
बढ़ा रहा है मेरा क्रोध ।
जरा नहीं है इसको बोध।
पुनीत 15मात्राएँ
अंत में गुरू गुरू लघु
बालक बकवादी बाचाल।
देख रहे सारे भूपाल ।
छोटा दिखने में आकार।।
मुँह में विष का है भंडार।।
गुपाल 15 मात्राएँ
अंत में लघु गुरू लघु
राम कहें हे भृगुकुल नाथ।
झुका हमारा हर पल माथ।।
मुझसे हुआ चाप अपराध।
जिससे पीडा हुई अगाध।।
सजा मुझे दें सोच विचार।
शांति पाये मन जिस प्रकार।
करें अनुज पर नहीं प्रहार ।
पूज्य विप्र बल आप अपार।।
परशुराम
श्रृंगार 16 मात्राएँ
मिटे सब मेरे मन का छोभ ।
भरा शिव गुरू भक्ति का लोभ।
चाप यह दिखा चढ़ाकर अभी।
क्रोध संदेह दूर हों सभी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
26/10/22