परवाज
तुमने परिंदे के परवाज को इसकदर जला दिया
के जैसे घास-फूस का घर था तुमने घर जला दिया
परिंदा हौसलों से उड़ने को बेताब क्या हुआ,
तुमने उड़ने से पहले उस परिंदे का पर जला दिया
आवाज़ परिंदे की बस गूँजती रही
लोग तमाशबीन बन के देखते रहे
दोष तुम्हारा वहां पर किसी ने न दिया
परिंदे को ही सारे लोग सहेजते रहे
अख़बार भी कैसे कहता तुम्हारे जुर्म की दास्तान,
तुमने छपने से पहले हर एक जो ख़बर जला दिया
तुमने परिंदे के परवाज को इसकदर जला दिया
के जैसे घास-फूस का घर था तुमने घर जला दिया
तुम्हारे जुर्म की हर एक दास्तान
कैद है अनगिनत निगाहों में
तुम्हें भी मुश्किल आएगी
इन बदहवास राहों में
छाँव भी मयस्सर न होगी एक पल तुम्हें,
तुमने तो खुद के राह का भी शजर जला दिया
तुमने परिंदे के परवाज को इसकदर जला दिया
के जैसे घास-फूस का घर था तुमने घर जला दिया
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
परवाज -उड़ान
तमाशबीन -तमाशा देखने वाला
शजर – वृक्ष