परवरिश
परवरिश
मुक्ता नौ महीने के आशीष को लेकर अरविंद सहगल के बंगले पर काम ढूँढने आई तो अरविंद की पत्नी नीना ने उसे काम पर रख लिया , उनका अपना दस महीने का बच्चा था , उन्हें लगा उनके बच्चे सिद्धांत को घर में ही कोई खेलने वाला मिल जायेगा, और मुक्ता की सहायता भी हो जायेगी । मुक्ता के पति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी , वह एकदम अकेली थी , उन्होंने उसे नौकरों के कमरे में रहने की सुविधा दे दी , उसका मुख्य काम सिद्धांत की देखभाल था ।
दोनों बच्चे साथ साथ बड़े होने लगे, स्कूल जाने का समय आया तो सिद्धांत का एडमिशन शहर के सबसे बड़े स्कूल में कराया गया, और आशीष भी पास के सरकारी स्कूल में जाने लगा । सिद्धांत को शुरू से ही लगता रहा कि आशीष उससे कम है , क्योंकि वह देखता , उसकी माँ ऊपर बैठती है और मुक्ता नीचे , उसकी माँ आदेश देती है और मुक्ता दौड़ पड़ती है , वह भी आशीष को आदेश देने लगा , उसकी इस ठसक को देखकर नीना और अरविंद बहुत खुश होते , वह सोचते यह फ़र्क़ सिद्धांत को पता होना चाहिए, तभी वह बड़ा आदमी बनेगा ।
मुक्ता आशीष से कहती , “ तुझे उसके साथ खेलना है को खेल , कोई मजबूरी नहीं है ।”
एक दिन अचानक नाराज़ होकर आशीष ने उसके साथ खेलना बंद कर दिया , वह बाहर सड़क पर भाग जाता या फिर कोई न कोई काम निकाल लेता । सिद्धांत उदास रहने लगा , नीना ने कहा ,” तूं अपने स्तर के बच्चों से दोस्ती क्यों नहीं करता ?” परन्तु इस सलाह का कोई परिणाम नहीं निकला । जब नीना से अपने बेटे की उदासी और नहीं देखी गई तो उसने मुक्ता से कहा ,
“ हमने तेरे लिए क्या नहीं किया , अब तू अपने बच्चे को सिद्धांत से खेलने के लिए नहीं कह सकती ? इतना भी अहसान नहीं मानती ?”
मुक्ता ने कहा , “ दीदी आपके सारे काम तो कर रही हूँ , अब अपने बच्चे से ज़बरदस्ती तो नहीं कर सकती !”
“ क्यों नहीं कर सकती, इतना अहंकार तुझे शोभा नहीं देता ।”
मुक्ता ने सिर झुका लिया, पर कोई जवाब नहीं दिया । नीना को इतना ग़ुस्सा आया कि , वह मुक्ता पर किये गए अपने उपकारों को ज़ोर ज़ोर से गिनवाने लगी , मुक्ता ने धीरे से कहा ,
“ यदि आप मुझसे खुश नहीं हैं तो मैं यहाँ से चली जाती हूँ ॥”
नीना रूक गई, मुक्ता के जाने का मतलब था , फिर से नए सिरे से किसी काम वाली को ढूँढना, और नीना जैसी भरोसेमंद नौकरानी मिलना आसान भी नहीं था।
“ तूं जायगी कहाँ , फिर अशीष का स्कूल भी तो है ।” उसने अहंकार से कहा।
“ आप उसकी फ़िक्र न करें , आप यदि खुश नहीं हैं तो बता दें ।”
नीना को ग़ुस्सा, लाचारी दोनों एक साथ अनुभव हो रहे थे , वह चुप हो गई । शाम को अरविंद के आते ही उसने मुक्ता की बुराई शुरू कर दी , मुक्ता रसोई में काम कर रही थी , सब चुपचाप सुनती रही । अरविंद ने कहा ,
“ एक नौकर और रख ले ।”
“ मुझे नौकर नहीं माफ़ी चाहिए ।”
यह सुनकर मुक्ता बाहर आ गई ।
“ मेरा हिसाब कर दो , मैं कल ही चली जाऊँगी ।”
नीना इतनी दृढ़ता के सामने कमजोर पड़ने लगी ।
अरविंद ने कहा , “ मुक्ता, आशीष भी हमारे बच्चे जैसा है , पिछले पाँच साल से वह हमारे साथ है , दोनों बच्चे अगर मिलकर खेलें तो इसमें हर्ज क्या है ?”
मुक्ता कुछ क्षण चुप रही , फिर कहा , मैं बात करूँगी उससे ।
दोनों बच्चे फिर से खेलने लगे , सिद्धांत भी पहले से सुधर गया , परन्तु नीना के अहंकार को चोट लगी थी , वह हर छोटी बात पर मुक्ता को डांट देती ।
आशीष यह सब देख रहा था और चाहता था किसी तरह बड़ा होकर माँ को यहाँ से निकाल ले जाय । मुक्ता को लगता, मेरा बच्चा यहाँ सुरक्षित है , इतना तो मैं सह ही सकती हूँ ।
सिद्धांत के लिये गिटार टीचर आया तो पता चला , आशीष उसको देख देखकर उससे कहीं अधिक सीख गया है । यही स्थिति बाक़ी विषयों के साथ हुई, आशीष आगे बढ़ रहा था और सिद्धांत पीछे छूट रहा था । नीना ने अरविंद से शिकायत की तो उसने कहा ,
“ यह भाग्य है ।”
परन्तु नीना को भाग्य का यह निर्णय पसंद नहीं आया , वह दिन रात सिद्धांत के पीछे लग गई, कभी उसका हाथ उठ जाता, कभी वह अपने भाग्य को कोसकर रोने लगती ।
नीना के इस व्यवहार से सिद्धांत के भीतर क्रोध पनपने लगा । अब उसे अपनी माँ पसंद नहीं थी , एक दिन उसने माँ कीं शिकायत बाप से कर दी । अरविंद को समझ नहीं आया वह इस स्थिति को कैसे सँभाले , उसने सोलह साल के सिद्धांत को थप्पड़ जड़ दिया । सिद्धांत अपमान और नफ़रत से जल उठा , उस रात पहली बार उसने छुपकर सिगरेट पी । उस रात उसे आशीष पर भी बहुत ग़ुस्सा आ रहा था , किसी तरह वह उसे नीचा दिखाना चाहता था , परन्तु उसका अवसर नहीं आया, क्रिकेट खेलने की वजह से उसे सिद्धांत के स्कूल ने छात्रवृति पर एडमिशन दे दिया था । अपने ही स्कूल में उसे हीरो बना देख सिद्धांत हीन भावना का शिकार हो गया । नीना भी दुखी रहती थी , उस घर में सबकुछ बिखर रहा था , और कोई कुछ नहीं कर पा रहा था ।
आशीष को इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन मिल गया , जिसकी फ़ीस का ज़िम्मा अरविंद और नीना ने लिया , परन्तु इससे उनकी उदासी कम नहीं हुई, सिद्धांत दो विषयों में फेल हुआ था , और मुक्ता के सिवा किसी से बात नहीं करता था । आशीष अब होस्टल में रहता था , सिद्धांत अब उससे बात भी नहीं करता था ।
एक दिन अपना सारा अहंकार छोड़ नीना मुक्ता के सामने रो पड़ी , नीना ने कहा ,
“ पिछले जन्म में तूने ज़रूर मोती दान किये होंगे जो इतनी अच्छी संतान मिली ।”
“ मोती तो मैंने दान किये ही होंगे जो मुझे आप और भईया मिले ॥”
“ मैंने तेरा इतना अपमान किया , फिर भी ऐसा कह रही है ।”
“ वह अपमान ही तो मेरे बेटे को कहाँ से कहाँ ले आया ।”
शाम को अरविंद आया तो उसने देखा नीना अंधेरे में लेटी है, सिद्धांत का कमरा रोज़ की तरह बंद है । उसने कमरे की बत्ती जलाई तो देखा , नीना कीं आँखें रो रोकर थक गई है ।
“ क्या हुआ?” उसने पास बैठते हुए कहा ।
“ अरविंद मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई ।”
“ कैसी भूल?”
“ अपने बच्चे को मैंने अपने अहंकार के साथ पाला , जबकि उस इतनी कम पढी लिखी मुक्ता ने अपने बच्चे को सम्मान के साथ पाला , हर स्थिति में उसके स्वाभिमान की रक्षा की ।”
“ मैंने भी तो उसे नहीं समझा ।” अरविंद ने दूर देखते हुए कहा ।
“ पर उसे बड़ा करने की पहली ज़िम्मेदारी मेरी थी ॥”
“ हम दोनों की थी ।” कुछ देर चुप रहने के बाद अरविंद ने कहा ,” अभी भी देर नहीं हुई है , हम अब भी उसे जानने का प्रयास कर सकते है । दूसरों से तुलना करना हमें बंद कर देना चाहिए, वो जो है , उसी को निखारने का अवसर देना चाहिए ।”
“ तुम इसमें मेरा साथ दोगे न ?”
“ हाँ , मैं यहीं हूँ, हम एक-दूसरे को समझकर अपने बच्चे को समझेंगे ।”
नीना मुस्करा दी , “ चलो जाओ , सिद्धांत को लेकर आओ, मैं खाना लगवाती हूँ ।”
अरविंद चला गया तो नीना ने आँख बंद कर गहरी साँस ली , और मन ही मन सुबुद्धि की प्रार्थना की , आज मुक्ता उसे अपनी सहेली जैसी लग रही थी , उसी ने तो उसे सिखाया था कि विनम्रता से संवेदना और दृढ़ता दोनों का विस्तार होता है , और आज सिद्धांत के भविष्य के लिए उसे इन दोनों की आवश्यकता थी ।
……शशि महाजन