परवरिश
स्वार्थ वश कुछ लोग इतना गिरे कि,
परवरिश पर उनके सवाल उठने लगे,
नाज था जिनको अपने पोषण पर कभी,
अपने ही संस्कारों पर बवाल मचने लगे।
गलतियों पर गलतियाँ देख कर उनकी,
जिन्दादिल इन्सान थे वो डरने लगे,
ऐसी भी मतलबपरस्ती किस काम की,
अपने ही रिश्ते अब बेगाने लगने लगे।
कभी अपनों से मिले संस्कार पहचान थे,
संस्कारों की उड़ा धज्जियाँ वो तोड़ने लगे।
मेरी परवरिश पर सवाल मत उठाओ यारो,
दुनिया वालों से चिल्ला -चिल्ला कर कहने लगे।
मां- बाबा की परवरिश इन्सान बनाती हमें,
आजकल के युवा क्यूँ यह भूलने लगे।
ज़िन्दगी की जंग लडने के लिये धैर्य चाहिए,
धैर्य, समता, शान्ति जीवन से बाहर फेंकने लगे।।
डा राजमती पोखरना सुराना