परवरिश
मां, मां नहीं आसमां है
मां तो पूरा जहां है
मां की ममता का सागर
कितना फैला हुआ है
बच्चों की तरक्की का निशां है
पालना,चलना, हंसना
सब सिखाना….
मां का हाथ का बना खाना
सब है से होती सुखद अनुभूति
प्रेरणा प्रोत्साहन से
बढ़ाती आत्मविश्वास
राह के साथ कांटे करती साफ
मंजिल हो जाती फिर आसान
बहुत मंगलकारी होती मां की ममता
मां की परवरिश की नहीं
कोई नहीं कर सकता समता,,
***
जब मैं बनी नन्ही सी गुड़िया की मां
तब से मेरे बहुत गुरू हो गए पैदा
ज्ञान की बहनें लगी लम्बी गंगा
पर मैंने नहीं लिया किसी से पंगा
पगला जाता मेरा सिर जो था चंगा
बेटी है सिर पर ना रखना
सुन कर,मन हो जाता मंलगा
पर मेरी परवरिश पर था विश्वास विशेष
बेहतर जानती थी,ना रखा कुछ भी शेष
मेरी मां की तरह आ जाती मैं भी पेश
किया सुंदर लालन-पालन पोषण ऐसे
बारिश करते सावन के मेघ जैसे।
_सीमा गुप्ता, अलवर