परम्पराओं की बेड़ियां
नमन मंच
शीर्षक- परम्पराओं की बेड़ियां
क्यों रखना चाहते हो मुझे ताउम्र
यूँ ही परंपराओं की बेड़ियों में
कभी देखा तो होता मेरे मन के भाव को
क्या चाहती हूँ मैं चलना चाहा मैंने भी स्वच्छंद
मेरी भी इच्छाएं हैं कुछ चाह हैं मेरी भी
पुरानी पसरम्पराओं में कब तक जकड़ी रहूँगी मैं।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?
मैं स्वयं में पूर्ण हूँ क्योंकि तुम सब की जन्म दात्री हूँ
प्रकृति में मुझे सम्मान दिया हैं रचयिता का और ये क्या
तुमने मुझे एक वस्तु मात्र ही समझ इस्तेमाल किया
अपनी शीतल छाँव प्रेम की देकर पालती रही हूँ तुम्हें
अपना वजूद खो तुमको पहचान दिलाती रही मैं
तो क्यों मुझे इन बेड़ियों में रखना चाहते हैं सब अब भी।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?
हर बात पर मुझे क्यों नीचा दिखाने की होती कोशिश
मुझे ये बेटी होने की जो बेड़ियाँ डाली गई हैं अब
मैं नहीं रह सकती हूँ तुम्हारी इन झूठी परंपराओं में
नहीं चाहिए साथ भी किसी का इनको तोड़ने में
आज सक्षम हूँ मैं स्वयं ही रूढ़िवाद से निकलने को
अब तक नजर अंदाज हुई मैं पर अब नही बस नहीं
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?
मौका तो दो क्या नहीं कर सकती हम बेटियां
आज भी घर की चौखट की रौनक होती हैं बेटियां
शिक्षित होकर कहाँ तक नहीं पहुँच सकती बेटियां
अपना ही नही आपका नाम भी कर सकती हैं बेटियां
उन्मुक्त उड़ने दो उसको भी खुले अंतरिक्ष में
फैलने दो उनके पंख भी इस सुंदर से संसार चमन में।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास…?
हौंसला दो इनको भी उड़ान भरने का जरा
बेटे के समान ही जन्म मिलता हैं ये सोचना जरा
खुद तोड़े ये बंधन बेटी तो तुम ही कर दो स्वच्छंद जरा
टूट न जाये उसका हौंसला आगे बढ़कर आगे आओ जरा
आज शिक्षित हो बेटी खोलो स्वयं इन बेड़ियों को जरा
मैं भी आज साथ खड़ी हूँ तुम बंधन खोलो तो जरा।
क्या हैं मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी के पास..?
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा:स्वरचित रचना