परमेश्वर की वार्ता
धरती से ज्यादा माँ सहिष्णु
गतिवान वायु से ज्यादा मन
पत्थर के हृदय नहीं होता
मछली सोती है खोल नयन
सबसे बढ़कर है धर्म दया
मन-कल्मष को त्यागना स्नान
जो व्यक्ति प्रवासी बने नहीं
वह है प्रसन्न, समझें सुजान
है धर्ममार्ग ही एक मार्ग
जिस पर चलते सत्याचारी
आश्चर्य यही- जग मरणशील
अमरत्व चाहते नर-नारी
है काल निरंतर पका रहा
हर जीव-जंतु को, प्राणी को
यह वार्ता है परमेश्वर की
मैं सुगति दे रहा वाणी को
महेश चन्द्र त्रिपाठी