परमार्थ
अपने घर की छाछ को खट्टा कौन बतावे,
अनेक घरों की छाछ जब घुल मिल जावे,
तब हकीकत सामने आने से छुपती जावे,
कढ़ी बाजरे से गोवर्धन स्वादिष्ट बन आवे,
खाने वाले स्वाद अपनी छाछ केभूल जावे,
लड़ घुलकर जब प्रसाद रुप थोडा सा पावें,
भोक्ता उसे सुस्वादिष्ट वा जायकेदार बतावें,
पानी पीकर जाति पूछने की प्रथा हट जावे,
जाति वर्ण भेद *जहान् से समूल मिट जावे,
अपने घर की छाछ से जब ध्यान हट जावे,
तब समझना टूट गया अहंकार प्रेम उपजावे,
कोई लाग नहीं न ही कोई लपेट उसे ही पावे,
न कोई भेष वेष जो जैसा धरे भेष सब पावे,
धरे मानवीयमूल्य ईश्वरीयछटा फूले फल पावे,
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस