परमात्मा
ऊपर वाले को ढ़ूंढ़ते मंदिर-मस्जिद में,
जबकि बैठा है वो अपने ही दिल में ।
प्रेम-भाव से ही ईश्वर का नाता है,
क्यों फिर मानव आडंबर अपनाता है ।
भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञाता है वो,
इस संसार का भाग्य-विधाता है वो।
प्रभु की दृष्टि में तो सब है एक समान,
कृपा-दृष्टि पाए, श्रद्धा से करे जो ध्यान ।
परमात्मा तो मूक को भी पढ़ लेता है,
आत्मा की आवाज भी सुन लेता है।
–पूनम झा
कोटा ( राजस्थान )
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