!! परदे हया के !!
परदे हया के फाड़-फाड़ वो कमसिन हो गए
लज्ज़त मिली जो उनको वो नमकीन हो गए
तन ढकने का सलीका भी आता नहीं जिनको
होठों पर लगा लाली वो हसीन हो गए
जीवन के कितने रंग हैं, ये तो पता नहीं
तमीज़ छोड़ – छोड़, वो रंगीन हो गए
सुनहरा बदन अंग-अंग, रस भरा दिखा
लोफर थे जितने आशिक नामचीन हो गए
फुटपाथ छाप लड़के जो पीछे पड़े उनके
मालूम नहीं कि कब वो नाज़नीन हो गए
बद्तमीज़ीयों को देख जो टोका कभी उनको
“चुन्नू” मां, बाप, रिश्तेदार सब संगीन हो गए
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ(उ.प्र.)