परदेशी-परदेशी तुम जाना नहीं
हास्य-कविता
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एक साहिब ने एक नौकर लगाया।
उसने अपना नाम परदेशी बताया।
उसने ड्यूटी फ़र्ज यूँ निभाया।
चार दिन की छुट्टी मारी।
एक दिन दफ़्तर को आया।
साहिब ने परदेशी को बुलाया।
उसकी तरफ़ देखा गुर्राया।
अबे!तू कल को दफ़्तर-
आना नहीं…. नहीं
इस पर बोला प्रदेशी..
क्या कहते हो साहिब..
कल को दफ़्तर आना नहीं..
आज तो बच्चे-बच्चे की..
ज़ुबान पर है साहिब…
परदेशी. परदेशी ..तुम..
जाना नहीं.. जाना नहीं..
हमें छोड़के।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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