परत दर परत
परत दर परत दिल में एहसास जम गए थे कई,
अन्दर ही अन्दर बस बढ़ते गए थे ज़ख्म कई,
ज़िन्दगी का एहसास ही खत्म हो गया हो जैसे,
मौत का ही दूसरा कोई रूप ज़िन्दगी में हो जैसे।
ऐसे में क्या करें, किधर जाएँ, हाल किसे सुनाएँ,
शोर ये दिल का किसे सुनाएँ, कैसे दर्द बताएँ,
कहने सुनने से भी ग़र कुछ न हो तो कहाँ जाएँ,
इस बेजान ज़िन्दगी में जान कैसे ही डाली जाए।
एहसासों के साथ कई एहसास यों ही घुलते गए,
कि मेरे दिल के ज़ख्म मरहम से ही धुलते गए,
यों तेरा बस छूना भर ही वो असर कर गया,
कि दिल के एहसास आँसुओं की तरह बहते गए।