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22 May 2023 · 1 min read

परछाई

इन्सान की इन्सानियत है परछाई,
अस्तित्व की पहचान है परछाई,
सुख में सुख की अनुभूति है परछाई,
सुखी जीवन का प्रतीक है परछाई।
………
आत्मा – परमात्मा के मिलन में बाधक है परछाई,
रूहानियत के सफ़र में अस्तिवबोध रूप है परछाई,
सत्कर्मों में सत्यनिष्ठा, ईमान का बोध है परछाई,
बुरे कर्मों का कलयुगी आईना है परछाई।
…………
सुख के दिनों में नौका विहार है परछाई,
दुःख के दिनों में अस्तित्व को कुरेदती है परछाई,
परछाई है तो जीजिविषा है,
बिना परछाई के सार्थक नहीं है भौतिक जीवन।

घोषणा: उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। यह रचना किसी अन्य फेसबुक ग्रुप या व्हाट्स ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।

डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।

Language: Hindi
259 Views
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