परछाई
इन्सान की इन्सानियत है परछाई,
अस्तित्व की पहचान है परछाई,
सुख में सुख की अनुभूति है परछाई,
सुखी जीवन का प्रतीक है परछाई।
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आत्मा – परमात्मा के मिलन में बाधक है परछाई,
रूहानियत के सफ़र में अस्तिवबोध रूप है परछाई,
सत्कर्मों में सत्यनिष्ठा, ईमान का बोध है परछाई,
बुरे कर्मों का कलयुगी आईना है परछाई।
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सुख के दिनों में नौका विहार है परछाई,
दुःख के दिनों में अस्तित्व को कुरेदती है परछाई,
परछाई है तो जीजिविषा है,
बिना परछाई के सार्थक नहीं है भौतिक जीवन।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।