परछाईं
शाम काे है जाना,
सुबह काे फिर है आना,
सुख दुःख मे रहूं तेरे साथ,
खुशी हाे या गम थामू हाथ,
परछाई हूं , पर छायी हूँ,
अंधेरे से घबरायी हूँ,
उजाले में आती हूँ,
संग तेरे रहती हूँ,
कैसा है यह जीवन,
क्याे हाेता है मिलन,
कब जागेगी चेतना,
कहां दूर हाेगी वेदना,
नींद से जब मैं जागा,
तुमकाे पास नही देखा,
क्याे छाेड़ जाती हाे अकेला,
कब लगेगा मिलन का मेला,
आशा का दीप तुम जलाओ,
निराशा का अंधेरा मिटाओ,
पास रहेगी तुम्हारी छाया,
बनकर तुम्हारा ही साया,
।।।जेपीएल।।।