परछाइयां
झूठी परछाइयाँ….
तुम देखते हो जो छोटा आदमी….
वो छोटा नहीं है..
तुम देखते हो जो, बड़ा आदमी…
वो भी बड़ा नहीं है…
ये सिर्फ़ परछाइयाँ हैं।
परछाइयाँ दिखती बहुत हैं…
छोटी ,बड़ी… और बड़ी हो जाती हैं…
रोशनी से तिलमिलाती,फिर मिट जाती हैं।
वो जो छोटी परछाई है न…
वो छोटे आदमी की नहीं…
वो जो बड़ी परछाई है न…
वो बड़े आदमी की नहीं…
झूठी परछाइयाँ आदमी से बड़ी भी…
और आदमी से छोटी भी दिख जाती हैं..!
हर आदमी का अलग और मिथ्या
कद तय कर जाती हैं…
छू कर देखो तो…
उस बड़े आदमी की परछाई को…
छू हो जायेगी, कभी पकड़ न आएगी….
परछाईं कुछ है भी तो नहीं…
आभास, है भ्रम , मायाजाल है…
जिसे रोशनी ही तोड़ पाएगी…।
तो जब लगे कोई… छोटा आदमी
दिल में एक दिया जला लेना…..
बेकार की इन परछाइयों को…
तुरंत मिटा देना
हाँ इन्हें मिटा देना….
#रीतेश माधव