पप्पू की बातें!!
जिसे वह पप्पू बता रहे थे,
उसे उसके भी उसे,पप्पू ठहरा रहे थे,
हम भी उसे पप्पू ही जता रहे थे!
वो पप्पू हम सबको समझा रहा था,
इनका कहा सच नहीं है,यह वह हमें बता रहा था,
हमने जिसे अनसुना किया, वह कब से हमें सुना रहा था!
पर हम जो ठहरे अधकचरे से,
ना पुरा पक्के,ना रहे कच्चे से,
भाव-भंगिमाओं में बह रहे थे!
हमने उसके कहे पर ध्यान धरा नहीं,
ये क्या कह रहा है, कभी गौर से सुना नहीं,
ये क्यों कह रहा है, कभी विचार किया नहीं!
बस हमने तो मंत्र मुग्ध हो सुर में सिर हिला दिया,
जो उन्होंने बतलाया हमें, हमने उसे दोहरा दिया,
बिना मर्म के जाने हमने,अपना बहुत कुछ गंवा दिया!
लेकिन अब कुछ बदला बदला सा लगने लगा,
ये छोकरा हमें जो बता रहा,
वही सब कुछ तोअब तक हुआ जा रहा!
उसने नोट बंदी पर ध्यान खिंचा था,
उसने जी एस टी को भी ठीक नहीं कहा था,
उसने रोजगार पर भी हमें चेताया था!
बेरोजगारी नित प्रति दिन बढ रही है,
अर्थ व्यवस्था डूब रही है,
सीमाओं पर तनाव बढ़ गया है,
दुश्मन हमारे घर में घुस आया है,
सरकारी संस्थाएं औने पौने बिक रही हैं,
पूंजी पतियों की आय नित्य प्रति बढ़ रही है,
अमीर और अमीर हुआ जा रहा है,
गरीब रसातल में समा गया है,
मिडिया भी खूब ध्यान भटका रहा है,
न्याय भी आम नागरिकों की पंहुच से दूर हुआ जा रहा है,
यही तो “वह” (पप्पू)हमें कबसे समझा रहा है।