पन्नों पे जो लिखा उन्हें, कलम नशीला हो गया
पन्नों पे जो लिखा उन्हें, कलम नशीला हो गया,
इस कदर बस गए हैं वो, ज़हन नशीला हो गया।
शोलों सा जलता हुआ, शबनम सा उनका हुस्न,
छूकर उनके जिस्म को, रेशम नशीला हो गया।
उनका मेरी रूह से मिलन हुआ देखकर,
वो गंगा जमुना वाला पावन, संगम नशीला हो गया।
वो करते रहे नकाब, अपने रुखसार पर,
हमारे प्रेम की नजरों से, चिलमन नशीला हो गया।
उनके मीठे बोलों से, सुर कानों में बजने लगे,
हमारे उनके अफसानों से, सरगम नशीला हो गया।
वक़्त कटता ही नहीं, उनके इंतज़ार में,
तन्हाई के तसव्वुर से, हर मिलन नशीला हो गया।
उनका आना क्या हुआ, हमारे बेरंग जीवन में,
हर ओर रंग खिल उठे, चमन नशीला हो गया।
ज़िक्र उनका क्या हुआ, मेरी गज़ल के शेरों में,
तालियाँ रुकती नहीं, सुखन नशीला हो गया।
————शैंकी भाटिया
नवम्बर 1, 2016