“पधारो, घर-घर आज कन्हाई..”
पधारो, घर-घर आज कन्हाई..
द्वापर युग की कथा,
जाय कोऊ बिधि ना बिसराई।
बढ़ने लगे अधर्म,
धर्मवीरोँ पर आफ़त आई।।
लेकर चला बहन को ज्यों,
मथुरा नरेश, अधमाई।
काल बनेगा आठवां,
पुत्र, यही ध्वनि आई।।
कारागृह, वसुदेव-देवकी,
मन-चिन्ता थी भारी।
छह मारे थे कँस,
सातवां नष्ट गर्भ, भरमाई।।
युक्ति कौन बतलाय,
आठवें की आई अब बारी।
करहु कृपा अब नाथ,
देवकी मन ही मन घबराई।।
बढ़े जो अत्याचार, कँस के
प्रजा, बहुत अकुलाई।
भाद्र चढ़त की अष्टमी,
जनमे आज कन्हाई।।
खुले द्वार-पट आप,
किसी सैनिक को ना सुध आई।
लिटा, झवैया पुत्र,
चले लेकर, जमुना उफ़नाई।।
घोर अँधेरी रात,
कड़क सँग दामिनि द्युति चमकाई।
घटने लगा था नीर,
छुआ जैसे ही तट, दम आई।।
पहुंचे गोकुल धाम,
यशोदा-नन्द, छवी मन भाई।
अदला बदली हुई,
बालिका लेकर चले सिहाई।।
कौरव कुल का नाश,
किया स्थापित जग,, धरमाई।
धन्य विष्णु अवतार,
देवजन हरषि सुमन बरसाई।।
आया शुभ दिन आज,
कृष्ण की गावें सब बलिहारी।
सजेँ झाँकियाँ, और दिखे
गृह-शोभा सबसे न्यारी।।
विधि विधान से हो पूजन,
श्रृद्धा-व्रत की तैयारी।
जनम-अष्टमी पर्व,
पधारो, घर-घर आज कन्हाई..!
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रचयिता-
Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964