पद का मद
पद के मद में चूर हुए
आदत से मजबूर हुए
पास गए जब गैरों के
तब अपनों से दूर हुए
भूल गए सेवा करना
जब से बड़े हजूर हुए
आसमान पर नजरें है
वो इतने मगरूर हुए
चूहों तक से डरते थे
आज बड़े वे शूर हुए
महफ़िल के चेहरे सारे
सुबह तलक बेनूर हुए
घरों में थे मर्यादा में
बाहर बे- शऊर हुए
बचपन के उदारवादी
उम्र बढ़ी तो क्रूर हुए
छोड़ दिये जितने दुश्मन
बाद में सब नासूर हुए