पथ से भटकाया है
**** पथ से भटकाया है ****
************************
मीठी बातों से बहलाया है,
पथ से अक्सर ही भटकाया है।
बहकावे में ले लेते दिलबर,
मन को हमने तो समझाया है।
खुद ही खुद से खुद को मारा,
दुनिया ने हम को भड़काया है।
गम के साये में जीते हम तो,
खुशियों का छत दिलवाया है।
जीवन मे ऐसे अवसर आये,
दुश्कर प्रश्नो को सुलझाया है।
मनसीरत सांसें जीने की कम,
रास्ता आगे का दिखलाया है।
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)