पथ मेरा सच्चा —— कविता
युग के प्रवाह को कैसे मोडू।
हवा बहे विपरीत,
खुद को उससे कैसे जोडू।
मन तो करता है बदल जाऊं
खुद भी पर,
पुरातन संस्कृति को कैसे छोड़ूं।।
पथ मेरा सच्चा,
सच्चे पथ की राहों में,
आडम्बर ,
झूठ का कैसे ओडू।।
देखता हूं जब भी ,
जमाने में,
अभाव,
सम्मान का दिन प्रतिदिन,
पूर्ति हो पाए कैसे,
कौन से पथ पर मै दोडू।।
राजेश व्यास अनुनय