पथ भी नहीं बुहारो मेरा
पथ भी नहीं बुहारो मेरा,
ठोकर दर ठोकर लगने दो।
होने दो पैरों को लहू लुहान,
कंटक उनमें चुभने दो।
होने दो भूख प्यास से विह्वल,
होने दो मजबूरी का अहसास।
तभी दीन-बंधु हो पाऊँगा ,
सहमते लोग आयेंगे पास।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
पथ भी नहीं बुहारो मेरा,
ठोकर दर ठोकर लगने दो।
होने दो पैरों को लहू लुहान,
कंटक उनमें चुभने दो।
होने दो भूख प्यास से विह्वल,
होने दो मजबूरी का अहसास।
तभी दीन-बंधु हो पाऊँगा ,
सहमते लोग आयेंगे पास।
जयन्ती प्रसाद शर्मा