पथिक
पथिक
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जीवन में अनजाने ही,
हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सांस की चलती काया,
जब चलते-चलते चूर हूई।
गति मिली तो में चल पड़ा,
पथ पर कहीं रूकना मना था।
किस तरह हम तुम मिले,
आज भी कहना कठिन है!
तन ना आया मांगने कुछ,
मन ही जुड़ गया था—
दिल के वास्ते।
बाट जोहते रहे हम,
पथिक मिलने के वास्ते—-
सुषमा सिंह *उर्मि,,