पथिक
पथ के राही तू चलता चल, लक्ष्य तेरा है निकट।
धैर्य का तू कर अनुसरण,ठोकरों से ना तू ड़र ।।
तेरी धड़कनो में भी अंगार है, जीवन एक संघर्ष है ।
बस यही एक सार है, बस यही एक सार है ।।
काँटो के विघ्न है, पुष्पों के सुयोग है ।
कहीँ पर मिलन है कहीं पर वियोग है ।।
प्रतक्ष्य और विकट है; विपदायें सन्निकट है ।
हार भी जीवन का अंग है,पथिक है तू और हौसला ही तेरे संग है ।।
ना डगमगाये कदम तेरे,तू चल, गिर, फिर उठ बस जीने का यही ढंग ह ।।
प्रतिपल तिमिर का विस्तार है,मन में विजय के भाव है ।
माना जीवन में किंचित अभाव है, तेरे हृदय में भी उमंगो का ज्वार है ।।
आतप अभी तीव्र है, उजाला अभी कुन्द है ।
लक्ष्य की कर तू साधना, तेरे अन्दर भी एक द्वंद है ।।
दामिनी की गर्जना हो या, प्रलय का आघात हो,
साहस तेरा अदम्य है, फिर वेदना की क्या बात है ।।
पथ के राही तू चलता चल लक्ष्य तेरा निकट ह.,,,,,,