पथिक
मुझसे है पर मेरा नहीं।
तू रचना सृष्टि की,
तू अंश ईश्वर का,
तू गीत अपनी अधरों का,
तू ताल अपनी लय का,
तू चिंतन अपनी मानस का।
उंगली पकड़ मेरी चलना सीखा,
चुरुंगुन बन दाना चुगा मेरे हाथों से,
तेरी पहचान मुझसे भले हो ,
परन्तु,
तू विहंग विशाल नभ का,
तू पथिक नव राह का,
तू स्वामी स्वतंत्र अस्तित्व का,
तू मुझसे है पर मेरा नहीं।
बन स्वच्छंद एक आत्मा,
कर विचरण इस धरा पर,
हो मुक्त माया के पाश से,
रह अडिग कर्तव्य पथ पर,
यह आशीष बस एक मेरा,
तू पथिक नव राह का,
तू मुझसे है पर मेरा नहीं।