*पत्रिका समीक्षा*
पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम :आध्यात्म ज्योति मई – अगस्त 2023, अंक 2 वर्ष 57 प्रयागराज
संपादन कार्यालय : श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत 61 टैगोर टाउन इलाहाबाद 211002
फोन 99 36 917406
डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव
एफ 9, सी ब्लॉक तुल्सियानी एनक्लेव, 28 लाउदर रोड इलाहाबाद 21 1002
फोन 9451 843 915
समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 1 5 451
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अध्यात्म ज्योति का श्रीमती मनोरमा सक्सेना जन्म शताब्दी विशेषांक
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अथर्ववेद की जीवेम् शरद: शतम् पंक्तियों को उद्धृत करते हुए डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव ने ठीक ही लिखा है कि शतायु होने एवं उत्कृष्ट जीवन जीने की सद् कामना की पूर्ति बिरलों की ही होती है।
वास्तव में श्रीमती मनोरमा सक्सेना ऐसी ही सौभाग्यशाली हैं जिनको दुर्लभ सौ वर्ष जीने का अवसर भी मिला और उस जीवन को कर्मशील रहते हुए समाज की सेवा में व्यतीत करने का स्वर्णिम सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। आपका जन्म 3 जुलाई 1923 को हुआ था । आपने श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत जी के शब्दों में “अपने जीवन की शताब्दी का प्रथम सवेरा देखा”
श्रीमती मनोरमा सक्सेना थियोसोफिकल सोसायटी की पुरानी और सक्रिय सदस्य रही हैं ।पत्रिका में श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत ने आनंद लॉज इलाहाबाद की पूर्व अध्यक्ष होने के नाते तथ्यों को संस्मरणात्मकता का पुट देते हुए अत्यंत रोचक बना दिया है। आपने बताया कि महिला धर्म लॉज 1940 में स्थापित हुई थी तथा डिप्लोमा अर्थात विधिवत सदस्यता 1947 में मनोरमा जी ने ग्रहण की थी। आप हिंदी और अंग्रेजी की विद्वान तथा थिओसोफी की प्रमुख अध्ययनकर्ताओं में से एक हैं। आपने आनंद लॉज इलाहाबाद में सचिव और अध्यक्ष के पद के साथ-साथ अध्यात्म ज्योति में संपादन कार्य में भी सहयोग किया है। आनंद बाल मंदिर इलाहाबाद में संस्थापक प्रधानाचार्य के साथ-साथ प्रबंधक का कार्य भार भी ग्रहण किया है। आपकी पुस्तकों की सूची इस प्रकार है :- आत्मोत्सर्ग, विचार बिंदु, जीवन की कला, स्वर्ण सोपान 6 अनुवाद एचपीवी ,अंतर्बोध 1 तथा छठवीं पुस्तक अंतर्बोध 2(प्रष्ठ 39) पु
स्तकों की सूची और थियोसोफिकल सोसाइटी में उत्तरदायित्वों के वहन से ही यह पता लगता है कि आपका कार्य विस्तार कितना अधिक था। इलाहाबाद की जिस नवादा कॉलोनी में आप रहती थीं, वहां आपने प्रशांत लॉज की भी स्थापना की । उसके अंतर्गत निशुल्क होम्योपैथी चिकित्सालय का भी संचालन किया। आनंद बाल मंदिर इलाहाबाद की 2 जनवरी 1969 को स्थापना आपके तथा आपके पति बी.एन. स्वरूप के प्रमुख योगदान से संपन्न हुआ था। इसके अतिरिक्त बी.एन. स्वरूप इलाहाबाद के भारत स्काउट गाइड कॉलेज के प्रबंधक भी रहे । इन सबको अपने संस्मरण के द्वारा श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत ने ताजा किया है। लेखिका श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत में इलाहाबाद के आनंद लॉज का डॉक्टर आई. के. तैमिनी और श्रीमती कुंवर तैमिनी का स्वर्ण युग देखा है । उनके शब्दों में “श्रीमती मनोरमा सक्सेना के आशीर्वाद की छाया में हमने 20 वर्षों का समय आनंद लॉज की सेवा में व्यतीत किया।”
श्रीमती मनोरमा सक्सेना का एक लेख भी इस विशेषांक में प्रकाशित किया गया है। इसका शीर्षक ‘थियोसोफी में धर्म और विज्ञान का समन्वय’ है। लेखिका श्रीमती मनोरमा सक्सेना ने धर्म और विज्ञान के परस्पर सहयोग पर बल दिया है। उनका कहना है कि “विज्ञान निरीक्षण, प्रमाण और प्रयोग को आधार मानकर ज्ञान प्राप्त करने को कहता है, जबकि दूसरी ओर अध्यात्म में ज्ञान प्राप्ति का साधन केवल मनुष्य की इंद्रियॉं न होकर उसकी सूक्ष्म शक्तियां हैं।”(पृष्ठ 14)
विज्ञान अनेक बार अनुसंधान के बाद आध्यात्मिकता का अनुसरण करता है। इस कथन के पक्ष में लेखिका श्रीमती मनोरमा सक्सेना ने पेड़-पौधों में जीवन की विद्यमानता का उदाहरण दिया है। उनका कहना है कि अध्यात्म तो सदैव से पौधों को जीवित प्राणी मानता रहा है लेकिन विज्ञान ने जगदीश चंद्र बोस के अनुसंधान के बाद ही यह माना कि पेड़ पौधों में जीवन है ।(पृष्ठ 18)
लेखिका ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “वास्तविकता को समझने के लिए आंतरिक अनुभूति की शक्ति विकसित करना आवश्यक है”
लेडबीटर साहब तथा डॉक्टर एनी बेसेंट ने यह कहा है कि यदि कोई व्यक्ति लगन के साथ साधना करे तो उसे भी ऐसी शक्तियां प्राप्त हो सकती हैं।( पृष्ठ 20)
थियोस्फी की वैज्ञानिक कार्य पद्धति पर बल देते हुए लेखिका श्रीमती मनोरमा सक्सेना का कथन है कि थिओसाफी हमें किसी नेता या पुस्तक की कही हुई बातों को अक्षरशः मानने के लिए बाध्य नहीं करती, अपितु उसका मत है कि हमें साधक बनाकर एक वैज्ञानिक की भांति अथक परिश्रम करके सत्य की खोज करना है। प्रत्येक की व्यक्तिगत अनुभूति ही सबसे महत्वपूर्ण है। अंत में लेखिका का आग्रह है कि थिओसोफी का अध्ययन किया जाए और उसे व्यवहार में लाया जाए ।
पत्रिका में थियोसोफिकल सोसायटी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष टिम वायड के एक लेख ‘इच्छा स्वतंत्र और करुणा’ का हिंदी अनुवाद डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव द्वारा किया गया प्रकाशित हुआ है। इसमें मैडम ब्लेवैट्स्की को प्राप्त अतींद्रिय शक्ति के कई घटनाक्रम वर्णित किए गए हैं। यह सब बताते हुए भी लेखक ने अंत में यही कहा है कि महान गुरुओं की शिक्षा यही है कि करुणा ही हमारे जीवन की मुख्य शक्ति है। इसी से अतींद्रिय शक्तियां प्रकट होती है। जब हम दूसरों के कष्ट और आवश्यकता को जान लेते हैं तो वही अतींद्रिय शक्ति है। (पृष्ठ 11)
पत्रिका में शिव कुमार श्रीवास्तव का लेख ‘ओम का अर्थ एवं महत्व’ तथा पूजा लाल का लेख ‘ईश्वरीय चेतना’ भी महत्वपूर्ण है।
‘एक सच्चे थियोसॉफिस्ट की जीवन यात्रा’ शीर्षक से आनंद लॉज इलाहाबाद के अत्यंत सक्रिय आजीवन सदस्य तथा सचिव रहे शिवकुमार श्रीवास्तव को मार्मिक श्रद्धांजलि श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत ने दी है। आप ‘अध्यात्म ज्योति’ पत्रिका के लेखा परीक्षक थे तथा संपादक डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव आपकी पत्नी हैं। पत्रिका में प्रकाशित थियोसोफी की विविध गतिविधियों से यह भी पता चलता है कि डॉक्टर श्रीमती सुषमा श्रीवास्तव ने अपने पति की स्मृति में एक लाख रुपए का अनुदान आनंद बाल मंदिर नर्सरी प्राइमरी स्कूल थियोसोफिकल सोसायटी इलाहाबाद को दिया है। इस कोष से विद्यालय के जरूरतमंद छात्रों को शिक्षण शुल्क सहायता दी जा सकेगी ।
पत्रिका के कवर पर श्रीमती मनोरमा सक्सेना का चित्र उनकी वृद्धावस्था के बाद भी अटूट जीवन शक्ति को दर्शा रहा है। उनके स्वस्थ रहते हुए सुदीर्घ जीवन की मंगल कामनाऍं।