पत्रिका प्रभु श्री राम की
पत्रिका प्रभु श्री राम की
मास चैत्र तिथि थी नवमी था पुनर्वसु नक्षत्र
कर्क लग्न में पांच ग्रह थे उच्च स्थान पदस्थ
उच्च स्थान पदस्थ चंद्र लग्न में स्वराशि था
जब जन्में श्री राम बृहस्पति था लग्न पदस्थ
स्वराशि होकर चंद्र देव बैठे हैं लग्न भाव में प्रभु राम के
बृहस्पति देव विराजे हैं उच्च के लग्न भाव में प्रभु राम के
चंद्र देव एक ओर जहांप्रभु को सौम्य और रूपवान बनाता है
वहीं दूजी ओर गुरु देव ने धर्म अध्यात्म और ज्ञान बढ़ाता है
सप्तम भाव पर देव गुरु नीच और मारक दृष्टि पड़ती है
सप्तम भाव में मंगल देव भी उच्च राशि के होकर बैठे हैं
ग्रहों का ऐसा संयोजन कुंडली में जो दिखाई पड़ता है
दांपत्य जीवन की राह में कष्ट और दुख बतलाता है
नवम भाव पर बृहस्पति देव की अमृत दृष्टि दिखाई देती है
पंचम भाव पर देव गुरु ब्रहस्पति ने अपनी नजर टिकाई है
नवम भाव के प्रबल होने से प्रभु के भाग्य का उदय हुआ
पंचम भाव के बली होने से प्रभु ने बुद्धि में निपुणता पाई है
नवम भाव में सुख के कारक उच्च के होकर बिराजे हैं
युति बनाकर केतु के संग राहु से सप्तम दृष्टि पाए हैं
हमने देखा प्रभु का जीवन भौतिक सुख साधन से दूर रहा
राहु और केतु के अक्ष में केतु संग शुक्र देव विराजे हैं
तृतीय भाव में बिराजे राहु उच्च के अपना खेल दिखाते हैं
चतुर्थ भाव में उच्च के शनि देव चक्रवर्ती योग बनाते हैं
राहु के प्रभाव ने प्रभु को शत्रुहंता और पराक्रमी बनाया है
मातृ भाव में उच्च के शनि माता के सुख में कमी बताते हैं
पिता के कारक सूर्य देव पर शनि की मारक दृष्टि पड़ती है
मातृ भाव में वैसे ही शनि पर सूर्य की मारक दृष्टि पड़ती है
प्रभु के जीवन को इन दोनों ने एक समान प्रभावित किया
एक तरफ माता का तो दूजी ओर पिता का वियोग दिया
इस प्रकार हम देखें तो पत्रिका प्रभु राम की अनूठी है
चार ग्रहों की अपनी उच्च की राशि में केंद्र में उपस्थिति है
अधिकतम योगों से परिपूर्ण होकर भी जीवन संघर्षपूर्ण रहा
मंगल देव और शनि देव की भूमिका बड़ी ही प्रभावी है
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश