पत्नी
जब तुम उठती हो,
पूरा घर उठ जाता है,
घर की बंद लाइटें जल जाती हैं,
घर में पसरा सन्नाटा सिमट जाता है।
जब तुम सोती हो,
तो पूरा घर सो जाता है,
हलचलें थम जाती है,
घर का प्रकाश सो जाता है ।
जब तुम पकाती हो,
तो भूख खुल जाती है,
घर की भूख मिट जाती है ।
तुम हो,
तो मकान घर है,
तुम हो,
तो सन्नाटे में हलचल है,
तुम हो,
तो उठने का उद्देश्य है ।
तुम हो,
तो जीवन है,
तुम हो,
तो मृत्यु का भय है ।
तुम्हारे होने से सब है,
मेरे होने से तो मैं खुद भी नहीं,
मैं जगता हूँ,
मगर सो जाता हूँ,
बिस्तर पर जाता हूँ,
और तुम्हारे सोने का इंतजार करता हूँ ।
पुरुष खामख्वाह,
इस अहम में है कि उसके होने से,
घर है, परिवार है,
मगर उसके होने से तो वह खुद भी नहीं,
वह भी पत्नी के होने से पति है ।
वह परिवार का हिस्सा है,
मुखिया नहीं ।
प्रशांत सोलंकी,
नई दिल्ली