*** ” पत्नी : अमर आत्मा की अनुबंध …! ” ***
*** किसकी कल्पना हो तुम…
कौन..? बताये मुझे..!
कैसी विचित्र रचना हो तुम…
संरचना, कौन..? समझाये मुझे..!
दूर-दूर तक दौड़ाया नजर..
कोई सीमा कभी तय न कर पाया..!
अनंत-असीम मेरे हृदय आंगन में…
तेरे ही “माया” की…
अमिट छाया ही मदमाया..!
तेरी देह..! सुधा की धाम है…
मेरा चंचल मन जहाँ विश्राम है..!
श्यामल-श्यामल…
तेरे नयनों की काजल..!
देख..! मन अबोध…, नादान…,
चंचल-चितवन…
हो गए तेरी ही कायल..!
तेरी अनोखी-मृदुल मुस्कान…
लगे मेरे मन को..!
जैसे आसमान में..,
खिला दूधिया चाँद-सुमन समान..!
*** तेरी आंखों में…
अद्भूत माया है..!
चंदन-सा बदन…
मधुमति-सी काया..!
मानो कोई उपवन-कानन सी तरु छाया है..!
देख छटा..!
करती है स्वागत्..!
वसुंधरा और धवल गगन..!
मन अबोध…
सरगम-संगीत नीर बहाये…,
और बन पाज़ेब…
झनकार लगाये अंतर्मन..!
हे अनुपमा…
सुरभि-सुलोचना..!,
हे मन-शोभना…
तुझपे कोटि-कोटि रति अभिराम है..!
और…
एक मुसाफिर.. चितचोर सजन्..!
सागर मंथन में अविराम है..!
*** कैसी अमिट.., अनमोल…
कला हो तुम..!
कलाकार की राह…,
कौन..? बताए मुझे..!
कौन है..? चित्रकार..!,
क्या है..? नाम..!
कहाँ है..? धाम..!
कौन..? वहाँ ले जाये मुझे..!
एक नाम गुमनाम है…
शायद…!
ओ भी बे-नाम है (प्रभु जी.!)…!
पर देख…
है अज़ब-गज़ब उसकी लीला…!
मन का…
है कैसा अज़ब-अटूट संबंध…
ओ है…!
मन की अतुल्य “अनुबंध..! ”
” तुम हो मन की अरमान है…! ” ,
” तू ही असीम सारा जहान है..! ”
” तुम हो कल्पनाओं की…
अमिट एक आकार..! ” ,
” है मेरा…!
अनमोल जीवन , जिसमें सवार..! ”
*** पंडितों से पूछा…
विचार किया..!
गणितज्ञों से मिला…
गुणा-भाग किया..!
उत्तर न जाने…
क्यों अनंत मिला..!
सोचकर जोड़-घटाव किया…
सवाल कुछ और जटिल हुआ..!
पर न जाने क्यों..?
हल न मिला..!
लेकिन..!
” सहभागिता की सारथी..!
अतुल्य जीवन सौंदर्य का…
अद्वितीय एक प्रतिरुप मिला..! ”
और…
” मन की अरमान को…
एक अनुपम अनुबंध मिला..! ”
” मन की अरमान को…
एक अनुपम अनुबंध मिला..! ”
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
०२ / १० / २०२०