चालीसा : पत्नी चालीसा
पत्नी की सब मानिये, महके घर संसार।
भला आपका चाहती, आप गले के हार।।
पत्नी घर का नूर है, लक्ष्मी आँगन द्वार।
सौंपा जिस माँ-बाप ने, मानो तुम आभार।।
पत्नी लगती सबको प्यारी।
फूल बने चाहे चिंगारी।।
बात प्रिया की माना करते।
कभी किसी से मनुज न डरते।।
नाराज कभी करो न प्यारे।
वरना दिन में देखो तारे।।
तारीफ़ सदा करते रहना।
विश्वास प्यार बराबर देना।।
जो माँगे सदक़ा कर देना।
भूले से पंगा मत लेना।।
हँसके हरपल करना बातें।
प्रेम भरी होंगी दिन-रातें।।
घर की लक्ष्मी पत्नी होती।
ख़ुशी प्रेम की फ़सलें बोती।।
इनसे महके घर फुलवारी।
इनसे लगता जग सुखकारी।।
पति की आदत बुरी छुड़ाए।
नित दिन हिम्मत ओज बढाए।
कथन कहे है सब हितकारी।
पीर भगाए दे किलकारी।।
पति जो होता आज्ञाकारी।
दिखलाए सकल समझदारी।।
घर-आँगन को है महकाती।
सुख की नदियाँ सदा बहाती।।
पीर नीर का नवल संतुलन।
शोभित जिससे मनहर भूवन।।
जिसको दो घर का प्रिय आँगन।
होती पति का पावन प्रिय धन।।
पत्नी की नीयत पहचानो।
सजग बनो सीरत को जानो।।
आत्मसात कर निश्छल माया।
देना सीखो चाहत छाया।।
कभी पड़ोसन को मत तकना।
ध्यान हमेशा बस यह रखना।।
मॉल घुमाना फ़िल्म दिखाना।
रूठे तब कर जोड़ मनाना।।
मिलजुल घर का काम करोगे।
पत्नी की तुम शान बनोगे।।
करो प्रशंसा शाम-सवेरे।
कल्पनाशील बनो चितेरे।।
ख़्याल सभी का रखनेवाली।
जैसे कोई वन का माली।।
एक-एक पौधे को सींचे।
कभी किसी से आँख न मींचे।।
दो घर की ख़ुशहाली मानो।
प्रीत कभी झूठी मत जानो।।
व्यवहारों का बोध कराए।
अपनेपन से हृदय लुभाए।।
संस्कारों की बेल उगाती।
सब फ़र्ज़ों को चले निभाती।।
परिवार बना जैसे माला।
सबको मोती करके डाला।।
प्राणप्रिया को समझो जितना।
सुख पाओगे तुम भी उतना।।
विष को भी अमृत बना लेती।
काँटों में फूल उगा देती।।
पत्नी महिमा बड़ी निराली।
यमराज बुद्धि भी हर डाली।।
कभी भूल पंगा मत लेना।
प्रेम समझकर हँसके देना।।
पति मन को समझे हरपल।
हँसी सिखाए बनके शतदल।।
रौनक बनती है जीवन की।
झलक दिखाती है मधुबन की।।
छोटी-छोटी ख़ुशियाँ बुनकर।
घर-आँगन में लाती चुनकर।।
पाककला की बन दीवानी।
उदर पूर्ति की लिखे कहानी।।
नार पराई नहीं सुहाए।
पति को उससे सदा बचाए।।
पति के मन में छल जब आए।
दो हाथ करे सबक सिखाए।।
उँगली पर पति कभी नचाती।
श्रेष्ठ कला है तभी दिखाती।।
कमज़ोर नहीं बलशाली है।
तभी हाथ में गृह-ताली है।।
पत्नी के गुन जो पति गाये।
स्वर्ग सरिस सुख नित दिन पाये।।
देवी घर की लक्ष्मी दर की।
राम बनो तुम सीता घर की।।
सेवा आठों याम हो, जीवन भरे उमंग।
प्रेम सुधा बरसाइये, रह पत्नी के संग।।
#आर.एस.’प्रीतम’
#स्वरचित रचना